Hindi Patrakaarita Ka Patan

[linkstandalone] अगर आज के समाने में कोई हिंदी के अखबारों के कुछ पैन पलट के देखे तो पत्रकारों की रटी रटाई अखबारी हिंदी के बीच के भ्रष्टता सी पनपती नज़र आती है।
मानो कैसे समय के साथ इन व्यक्तियों की साहित्यिक क्षमता काम होती जा रही हो। परन्तु केवल साहित्यिक क्षमता ही नहीं, इन पत्रिकाओं की बौद्धिक क्षमता भी समय के साथ गिरती जा रही है।
जहाँ अंग्रेजी पत्रिकाओं में नए विचार, नए सामजिक पहलु और उप्लब्धियों पर टिपण्णी और सोच विचार किया जाता है, हिंदी अखबार तो केवल उन अंग्रेजी न पढ़ने लिखने वाले बदकिस्मत लोगों को देश दुनिया में क्या हादसे-घटनाएं घाट रही हैं इन सब का एक जिसे पिता सरल संक्षिप्त परिचय देने का कार्य पूर्ण करते हैं।
जहाँ पर अंग्रेजी अखबार खबरों को कहीं एक आक्रामकता से जूहजते हैं, किसी नयी प्रगतिशील विचार धरा के अनुसार एक घटना को देखते है, और कभी एक रचनात्मक रूप ले कर हमें अच्छे शीर्षक वाली खबरें ही दे देते हैं, हिंदी अखबार घटना का एक विवरण दे कर चुप्पी साद लेते हैं.