An entry from my journal, written in a midnight writers unblock initiated by Sarveshwar Dayal Saxena and fueled by Mishima
कल पेपर है। और कल चंद मिनटों में आ जाएगा।
पता नहीं कैसे गुज़र गया दिन पूरा। अधनंगा बैठा था अंधेरे में, तो पिछले कमरे की दीवार से धप की आवाज़ आई। मुझे लगा कोई है, तो बड़े दरवाज़े का मुआइना किया। हवा के दबाव में कुछ परिवर्तित सा था। दरवाज़े के क़रीब एक हवा का बहाव था जो नहीं होना चाहिए था। परदों के बीच की दरार से झांका, तो बाहर पौधे हिल रहे थे। हवा चल रही थी। मैंने परदे खोले, जाली खोली। आख़िर दरवाज़े का भिड़ना हवा के दबाव में बदलाव के कारण था।
Fluid Mechanics
आसमान में दूर कहीं बिजली चमक रही थी—भयंकर बिजली। आवाज़ कम थी, रोशनी ज़्यादा। चौक के बीच का एक शांत सा कुत्ता बिजली की ओर देख रहा था। मैं भी बिजली की ओर देख रहा था, बारिश के इंतज़ार में। दूर कहीं बादल गरज रहे थे, बारिश हो रही थी।
शुरुआत में उस कुत्ते को भी इसमें रुचि थी, लेकिन अब वह जाकर लेट गया था। उसे आम खाने में रुचि है, पेड़ गिनने में नहीं।
उसे फर्क नहीं पड़ता कि ठंडी हवा का रुख क्या है। वह बस ठंडी हवा खाकर खुश है।
बिना छत के, बिना बारिश के, सुखा और ठंडी हवा में मस्त नींद ले रहा है।
सीटी वाले चौकीदार की शिफ्ट लग गई है। पहर बदल गया है।
नया दिन चालू हो गया है। और मैं अभी भी बारिश का इंतज़ार कर रहा हूँ।