बात होती है तो केवल उसकी जो स्पष्ट रूप से सभी की इंद्रियों में पंजिकृत (बहतर शब्द की गैर मौजूदगी में।) हो। तापमान, वायु का रुख, कुत्तों का भौंकना, विविद्ध प्रकार की गंधें वगैरा इस वार्तालाप के लिए उत्तम विष्य हैं। अपने निजी दर्षन इस चर्चा में न ही लायें तो अच्छा है। मालूम नहीं कब कोई छोटी सी टिप्पणी या राय आऐगी और माहौल को एक तनाव से भर देगी। एसा तनाव जो स्वयं को शंका के घेरे में दाल देगा, कि कहीं आप ही तो किसी प्रकार के अधर्मी नहीं?
इस वार्तालाप का “स्कोप” यहीं तक सीमित है। परंतु मैं इसे भी भंग करना चाहता हूँ| मैं ये वातालाप भांग पीकर करना चाहता हूँ। स्वयम् का अनुभव तो नहीं परंतू राह पर चलते हुए प्राप्त करा ज्ञान है, कि भांग पी कर व्यक्ती अपनी इंद्रियों का संतुलना खो बैठता है|कभी तो कपकपी चढती है और कभी तो बुखार सा। जब मौसम और हवा के रुख का ही ज्ञात न हो तो भला ये (स्मॉल टाल्क की श्रृंखला से चल रही) चर्चा ही क्या होगी ? और सोचिये, अगर इस चर्चा समूह में सब ही की इन्द्रियां इस रूप बेसूद होंगी, तो न जाने किस प्रकार का “इडियोसिंक्रेटिक” अजूब देखने को मिलेगा| शायद इस ही लिए लोग नशे करते है| जो साथ बैठ कर साफ़ व स्पष्ट चर्चा नहीं कर सकते, इस ही तरह से अपने विचार वे सोच बहार निकलते है|
बेहतर शब्द के आभाव में अंग्रेजी शब्दों का “-/-” चिह्न लगा कर प्रयोग किया गया है |
कभी सितम्बर २०२३ के दौरान लिखा गया, हाल ही में सम्पादित।